दिल की दुनिया में तिरी याद के मंज़र जागे आँख से अश्क गिरे ग़म के समुंदर जागे क़ाफ़िला लुटने का अफ़्सोस नहीं दुख ये है राहज़न जा चुके जिस वक़्त तो रहबर जागे दिल की ज़ुल्मत को मिटाया ही नहीं जा सकता जब तलक शहर-ए-तमन्ना में न महशर जागे हम से दीवानों ने सर पेश किए हैं हँस के जब भी मक़्तल में कभी ज़ुल्म के ख़ंजर जागे इंक़लाब एक नया बरपा जहाँ में होगा ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से कभी जब भी सुख़नवर जागे सारी तदबीरें यहाँ हो गईं 'साइर' बे-सूद हम गिला किस से करें गर न मुक़द्दर जागे