दिल की हर बात तिरी मुझ को बता देती है तेरी ख़ामोश नज़र मुझ को सदा देती है दूर रहना मुझे मंज़ूर नहीं है तुझ से ज़िंदगी साथ तिरे मुझ को मज़ा देती है अपनी कुटिया के अँधेरे को मिटाऊँ कैसे वो मिरे दीप को ज़ुल्फ़ों से हवा देती है तेरी ये ही तो अदा भाती है जानाँ मुझ को जब नज़र सामने मेरे तू झुका देती है इश्क़ का रोग लगा है कई बरसों से मुझे किस लिए मुझ को ये फिर दुनिया दवा देती है