आईना देख कर न तो शीशे को देख कर हैरान दिल है आप के चेहरे को देख कर ये वाक़िआ भी ख़ूब सर-ए-रह-गुज़र हुआ पत्थर ने मुँह छपा लिए शीशे को देख कर बाज़ार से गुज़रते हुए लग रहा है डर बच्चा मचल न जाए खिलौने को देख कर जुगनू की कोशिशों से सहर कैसे हो गई हैरान हैं अँधेरे उजाले को देख कर सच बोलने का हौसला कुछ और बढ़ गया 'अम्बर' फ़राज़-ए-दार पे सच्चे को देख कर