दिल की कश्ती डुबो दी गई है यहाँ धड़कन अब शोर करती उठी है यहाँ दिल की बस्ती में वीरानियाँ छा गईं धुंद यादों की बरसों बसी है यहाँ धूप उस सम्त क्यों तेज़ ठहरी रही शाम के साए में तो नमी है यहाँ ख़ुश्क अंखों से सपने चुराए गए और हथेली हिना से रची है यहाँ दूर से उड़ के आए परिंदे नए शोर में चहचहाहट नई है यहाँ शाम के बाद घर ये नया हो गया वस्ल की शब मुकम्मल हुई है यहाँ लौ चराग़ों की 'निकहत' ज़रा कम करो इक नई रौशनी आ रही है यहाँ