इश्क़ में हुस्न हलचल मचाता चले साथ में नाज़ भी कुछ दिखाता चले इश्क़ की ज़िद है कि हुस्न पाबंद हो दर्द को अपने दिल में छुपाता चले वो वफ़ा का अलम ले के निकले अगर सूरत-ए-आइना कुछ दिखाता चले कैफ़ियत को छुपाना बड़ी बात है इश्क़ हर बात लेकिन बताता चले इश्क़ बेचारे का काम इतना सा है हुस्न के नाज़ ही बस उठाता चले उस की दीदा-वरी देख लीजे ज़रा अपनी अंखों से क्या क्या सिखाता चले उस सितमगर का 'निकहत' है बदला अजब बस वफ़ा पर मिरी मुस्कुराता चले