दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया दर्द में दिल डूब कर क़तरे से दरिया बन गया उन के आग़ोश-ए-मशिय्यत में है नाकामी मिरी काम कुछ इस तरह बिगड़ा है कि गोया बन गया दिल की रुत ऐसी तो याद-ए-यार ने बदली न थी ये चमन उजड़ा ही इस ढब से कि सहरा बन गया नक़्श-ए-मौहूम-ए-हयात अफ़्साना-दर-अफ़्साना था जब ये नक़्श उभरा तो इक हर्फ़-ए-तमन्ना बन गया लो मुबारक लज़्ज़त-ए-ग़म भी है अब तो नागवार दिल मोहब्बत में जो बनना चाहिए था बन गया जल्वा-ए-क़सरत ख़ुद अपना शौक़-ए-बे-अँदाज़ा था महफ़िल-ए-लैला मिरी नज़रों में लैला बन गया मेरी महरूमी भी रुस्वा है कि 'फ़ानी' हाल-ए-दिल उन के कानों तक न पहुँचा और फ़साना बन गया