दिल की ख़्वाहिश है कि मैं वक़्त का नौहा लिक्खूँ ज़िंदगी क्या है फ़क़त आग का दरिया लिक्खूँ यहाँ सामान-ए-नशात-ए-दिल-ओ-जाँ कोई नहीं ग़म-ए-दौराँ तिरा कैसा मैं सरापा लिक्खूँ यहाँ गुफ़्तार में शीरीनी है किरदार में खोट क्या है पस्ती का सबब तू ही बता क्या लिक्खूँ ज़हर-आलूद है मंज़र कि फ़ज़ा है मस्मूम हाल काग़ज़ पे मैं किस किस की अता का लिक्खूँ रोज़ इक और तमाशा नज़र आता है 'शबीन' रोज़ इक और बदलता हुआ चेहरा लिक्खूँ