दिल की शो'ला-ज़ाई के आँखों की तुग़्यानी के दिन हैं जवानी के ही दिन दर-अस्ल जौलानी के दिन इन में तो दानाइयाँ खुल कर दिखाती हैं कमाल कौन कहता है कि ये होते हैं नादानी के दिन था लहू में तर-ब-तर दामन हमारा जिन दिनों हम न भूलेंगे कभी वो ख़ून-अफ़्शानी के दिन ताज़ा ताज़ा आया था जब कारवान-ए-फ़स्ल-ए-गुल याद हैं अब तक हमें वो ख़ाना-वीरानी के दिन कैसे लोगों को बताएँ मुश्किलों पर मुश्किलें कितनी पैदा करते हैं ये ख़्वाब-सामानी के दिन होते होते जान को हो जाता है हासिल क़रार जाते जाते जाते हैं 'मंशा' परेशानी के दिन