दिल की तफ़्हीम का मोआ'मला था हम को दरपेश ऐसा मसअला था हम ने तदबीर कुछ किया हुआ था और मुक़द्दर अजीब सिलसिला था नाज़-परवर तिरी सुहूलत को दिल को तेरा बनाया मश्ग़ला था रंग-आवर थे लम्हे जीवन के कोई जन्नत का जैसे दर खुला था हाथ पर लफ़्ज़ थे 'दुआ' के इधर पाँव में साँस लेता आबला था