दीद को तेरी मैं तरसी चाँद की इस रात में बैठी तो बस देख बैठी चाँद की इस रात में चाँद कुछ धीरे से बोला तो था मेरे कान में चाँद की मैं बात सुनती चाँद की इस रात में चाँद अब मेरी हथेली पर सजा दो जान-ए-जाँ है घड़ी आई मिलन की चाँद की इस रात में चाँद जैसा चाँद हो कर चाँद क्यों लगता नहीं रौशनी क्यूँकर है फीकी चाँद की इस रात में अपनी अपनी तिश्ना-कामी भूल कर जान-ए-'दुआ' आओ घूमें हम ख़ुशी से चाँद की इस रात में