दिल की तख़्ती से मिरी याद खुरचने वाले इस क़दर जल्द नहीं नक़्श ये मिटने वाले फिर किसी याद का पौदा न लगाना दिल में जान-लेवा हैं शगूफ़े भी ये खिलने वाले घुप अँधेरों का तदारुक भी ज़रूरी ठहरा शब के पहलू से हैं तारे भी निकलने वाले बौर चाहत का दरख़्तों पे लगा देखा है शाख़-ए-उम्मीद पे हैं फूल भी खिलने वाले जब पुकारा है तिरे नाम को ऐ रब्ब-ए-करीम काम बनते ही चले जाएँ बिगड़ने वाले अब तो तदबीर नई ढूँडनी होगी 'अहसन' सिर्फ़ बातों से नहीं हैं वो बहलने वाले