दिल किसी मुश्ताक़ का ठंडा किया ख़ूब किया आप ने अच्छा किया आज हया आँख की कुछ और है चाहने वाला कोई पैदा किया हाए रे पैमाँ-शिकनी के मज़े जब मैं गया वादा-ए-फ़र्दा किया कुछ तो किसी ने उन्हें समझा दिया हम जो गए आज तो पर्दा किया गो कि न था मेरी तरफ़ मुँह मगर तिरछी निगाहों से वो देखा किया आह की तक़्सीर नहीं है मगर बे-असरी ने मुझे रुस्वा किया कह के ले आते हैं तुम्हें होशियार ये न किया हम ने तो फिर क्या किया मौत के सदक़े कि ये कहते थे वो आज न उस ने कोई फेरा किया आप के एहसान की तारीफ़ है मैं ने अगर शिकवा-ए-आ'दा किया नाम मेरा सुनते ही शर्मा गए तुम ने तो ख़ुद आप को रुस्वा किया क़द्र मिरी तुम ने न की वर्ना मैं क्या कहूँ क्या आप को समझा किया मैं ने तो ऐ जान-ए-जहाँ जान दी तुम ने अदा हक़्क़-ए-वफ़ा क्या किया फिर वो नहाए अरक़-ए-शर्म में किस ने मिरे इश्क़ का चर्चा किया मैं दिल-ए-सद-चाक का कहता था हाल शाना अबस ज़ुल्फ़ से उलझा किया उस की नज़र में हुआ हल्का 'नसीम' मुझ से मिरे शौक़ ने क्या क्या किया