दिल को आज़ार लगा देती है अबतरी पार लगा देती है चाँद तो एक ही होता है क़लक़ बे-कली चार लगा देती है हम वो तस्वीर ख़मोशी हैं जिसे ख़ुद पे दीवार लगा देती है हसरत-ए-शौक़ की च्यूँटी दिल में ग़म का अम्बार लगा देती है ज़िंदगी तेरे तमांचों से हज़र रोज़ दो चार लगा देती है