दिल को एहसास की शिद्दत ने कहीं का न रखा ख़ुद मोहब्बत को मोहब्बत ने कहीं का न रखा बू-ए-गुल अब तुझे एहसास हुआ भी कि तुझे तेरी आवारा तबीअ'त ने कहीं का न रखा तुम को हर शख़्स से है चश्म-ए-मुरव्वत की उमीद तुम को इस चश्म-ए-मुरव्वत ने कहीं का न रखा हम वो हैं जिन को तमाशा-कदा-ए-हस्ती में जल्वा-ए-आलम-ए-हैरत ने कहीं का न रखा निगह-ए-शौक़ किसी शय पे ठहरती ही नहीं इस बसारत को बसीरत ने कहीं का न रखा पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े अब ये शिकवा कि शराफ़त ने कहीं का न रखा