ये भी रविश क्या ख़ूब है सच्ची ख़ुशी के वास्ते जीना किसी के वास्ते मरना किसी के वास्ते लाज़िम हैं दूर-अंदेशियाँ इक फ़लसफ़ी के वास्ते फ़िक्र-ओ-नज़र दरकार हैं दानिश्वरी के वास्ते जब तक न हो इरफ़ान-ए-ज़ात इदराक-ए-आलम कुछ नहीं या-रब बसीरत कर अता ख़ुद-आगही के वास्ते अहल-ए-ख़िरद से हल न होंगे ज़िंदगी के मसअले अहल-ए-जुनूँ को ढूँड इस दर्द-ए-सरी के वास्ते होते रहोगे ता-ब-के शर्मिंदा-ए-एहसान-ए-ग़ैर यारो यहाँ की चंद-रोज़ा ज़िंदगी के वास्ते दोनों हैं अफ़्सुर्दा-दिल आज़ुर्दा-नज़र आशुफ़्ता-हाल इक बे-ख़ुदी के वास्ते और इक ख़ुदी के वास्ते किस दर्जा पुर-असरार होता जा रहा है इन दिनों इक मसअला है आदमी ख़ुद आदमी के वास्ते मुझ को किसी की ज़ात से क्या लेना देना है मगर कोशाँ हूँ मैं तो इत्तिहाद-ए-बाहमी के वास्ते 'रहबर' न होगा शबनम-अफ़्शानी से बार-आवर ये बाग़ ख़ून-ए-जिगर की है ज़रूरत शायरी के वास्ते