दिल को ज़र से न तोलिए साहब हम फ़क़ीरों से बोलिए साहब अपना जैसा सभी को पाएँगे दिल का दरवाज़ा खोलिए साहब अब तो बदलें कि दिन बदलते हैं अहद-ए-माज़ी को रो लिए साहब उन के दस्त-ए-हिनाई की ख़ातिर हाथ ख़ूँ में डुबो लिए साहब जो भी हँस के मिला मोहब्बत से दिल से उस के ही हो लिए साहब इन गुलाबों में रंग भरने को ख़ुद ही काँटे चुभो लिए साहब इतना रोए हैं अहद-ए-माज़ी को दिल के सब दाग़ धो लिए साहब अब तो उठिए कि दिन निकलता है रात भर ख़ूब सो लिए साहब आप अपने मफ़ाद की ख़ातिर बीज नफ़रत के बो लिए साहब सारी ख़ुशियाँ हैं दिल में 'सैलानी' अपने दिल को टटोलिए साहब