ऐसी होती हैं बाज़ तक़दीरें बहते पानी पे जैसे तहरीरें रेत के इक घरौंदे जैसी हैं आदमी की जहाँ में तदबीरें हम ने तो सिर्फ़ ख़्वाब देखे थे बस में अपने कहाँ थीं ता'बीरें क़स्र-ए-ज़र में सजी हुईं देखीं मुफ़लिसों बे-घरों की तस्वीरें मेरी क़िस्मत में ज़ुल्मतें सारी उस की मुट्ठी में सारी तनवीरें जी में आता है तोड़ ही डालूँ सारी होश-ओ-ख़िरद की ज़ंजीरें याद के तार तार कैनवस पर अब भी बाक़ी हैं चंद तस्वीरें बात 'सज्जाद' साफ़ कहता है आप जो चाहें कर लें तफ़्सीरें