दिल को कितना समझाया है सब माया है कौन किसी का हो पाया है सब माया है जब भी ख़्वाब से बाहर आने की कोशिश की नींद का आलम गहराया है सब माया है हम ने अपनी ख़ातिर इक सूली बनवा कर ख़ुद को उस पर लटकाया है सब माया है क्या मज़हर की निस्बत होती है मंज़र से क्या सूरज है क्या साया है सब माया है राह में बैठने वाले लोगों ने ही अक्सर हम को राह से भटकाया है सब माया है हम ने ज़ीस्त-मुअ'म्मा आख़िर हल कर डाला सब माया है सब माया है सब माया है