क्यों तीरगी पे तुम को गुमाँ चाँदनी का है आख़िर ये रंग रूप कहाँ चाँदनी का है ज़ुल्मत का इश्तिहार बने फिर रहे हैं हम सोचो अगर तो ये भी ज़ियाँ चाँदनी का है ये रौशनी का शहर है कैसा कि अब यहाँ देखा जिसे भी नौहा-कुनाँ चाँदनी का है इस शहर-ए-बे-चराग़ से आओ निकल चलें वो इस लिए कि शोर यहाँ चाँदनी का है ना-बीनगी के रोग में हैं मुब्तला वही 'पर्वाज़' जिन का अपना मकाँ चाँदनी का है