दिल को नसीब सोज़-ए-ग़म-ए-गुलसिताँ कहाँ होता तो आज होता ये दर्द-ए-निहाँ कहाँ ज़ौक़-ए-बहार ही है न ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ मुझे गुम-सुम है अपने हाल में तब-ए-रवाँ कहाँ जिस से गुलों के ज़ब्त का दामन हो तार तार है अंदलीब तेरा वो ज़ौक़-ए-फ़ुग़ाँ कहाँ हो जाए अब न ख़त्म फ़साना फ़िराक़ का हैं नूर-ए-सुब्ह रात की नैरंगियाँ कहाँ ले जाएगी सबा मिरा पैग़ाम तू मगर होगा सुबुक हवा से मिज़ाज-ए-गराँ कहाँ ले आए तोड़ तोड़ के तारे फ़लक से हम लेकिन नसीब क़ुव्वत-ए-हुस्न-ए-बयाँ कहाँ 'शादाँ' न ढूँढ अर्सा-ए-ग़ुर्बत में आसरे इस में चमन की अर्ज़िश-ए-अर्ज़-ओ-समाँ कहाँ