ख़फ़ा मत हो मुझ को ठिकाने बहुत हैं मिरा सर रहे आस्ताने बहुत हैं बहुत दूर है अपने नज़दीक तू भी तुझे याद काफ़िर बहाने बहुत हैं बहाने न कर मुझ से ऐ चश्म-ए-गिर्यां अभी अश्क मुझ को बहाने बहुत हैं मिरे चश्म-ओ-दिल और जिगर सब हैं हाज़िर तू ख़ातिर-निशाँ रख निशाने बहुत हैं कशिश दिल की ही काम करती है वर्ना फ़ुसूँ सैंकड़ों हैं फ़साने बहुत हैं जुनूँ नक़्द-ए-दाग़-ए-जिगर माँगता है ये कह दो कि अब तो ख़ज़ाने बहुत हैं बहुत कम है सच इस ज़माने में 'एहसाँ' यहाँ झूट के कार-ख़ाने बहुत हैं