दिल को पत्थर बना के देखूँगा मैं भी तुझ को भुला के देखूँगा रास्ते का तो कर लूँ अंदाज़ा सू-ए-मंज़िल भी जा के देखूँगा ख़ुद बुझा दूँगा दीप मैं जब भी तौर बदले हवा के देखूँगा किस लिए लोग हैं फ़िदा उस पर उस की महफ़िल में जा के देखूँगा मैं ख़ुशी की तरफ़ भी बाज़ औक़ात ग़म से नज़रें चुरा के देखूँगा चाहे खो जाए नूर आँखों का उस को नज़रें जमा के देखूँगा बा-वफ़ा ही सही मगर 'हातिफ़' मैं उसे आज़मा के देखूँगा