बे-वतन हूँ वतन में आकर भी जल रहा हूँ चमन में आकर भी मेरी हस्ती का पूछते क्या हो जान बे-जाँ है तन में आकर भी पाई ना-क़दरी-ए-अदब अक्सर हम ने बज़्म-ए-सुख़न में आकर भी रक्खा तीर-ए-सितम मिरी जानिब उस ने दीवाना-पन में आकर भी बद-नुमाई न छुप सकी दिल की ख़ुशनुमा पैरहन में आकर भी बे-सुकूँ ही रहे सदा की तरह हम तिरी अंजुमन में आकर भी हैफ़ पाई नहीं अमाँ 'हातिफ़' शहर वालों ने बन में आकर भी