दिल को तिरा ख़याल तिरी जुस्तुजू रहे मक़्सद मिरी हयात का बस तू ही तू रहे आए कभी न दिल में किसी ग़ैर का ख़याल होंटों पे सुब्ह-ओ-शाम तिरी गुफ़्तुगू रहे मेरी निगाह-ए-शौक़ तुझे ढूँढती रही वैसे तो आस-पास कई माह-रू रहे इक दिन ज़रूर आएँगे वो मेरे ख़्वाब में इस इंतिज़ार-ए-यार में हम बा-वज़ू रहे दुनिया की रंजिशों की शिकायत करें तो क्या ख़ुद अपने ही नसीब से हम दू-बदू रहे दे कर गई है बाद-ए-सबा ये दुआ 'मजीद' शेर-ओ-सुख़न की बज़्म की तू आबरू रहे