दिल में जो बसाई थी वो तस्वीर नहीं है ये हुस्न मिरे ख़्वाबों की ता'बीर नहीं है सुनता ही नहीं वो मिरी क्या मुझ से ख़फ़ा है या मेरी दुआ में अभी तासीर नहीं है महफ़िल में कई हुस्न के पैकर तो हैं लेकिन कोई भी मिरे वास्ते दिल-गीर नहीं है खिलने को तो खिलते हैं कई फूल चमन में हर फूल की हाँ एक सी तक़दीर नहीं है महफ़ूज़ रहे गर्दिश-ए-दौराँ से हमेशा दुनिया में कोई ऐसी भी ता'मीर नहीं है इस दिल पे करे कौन 'मजीद' आ के हुकूमत दिल की है ये दुनिया कोई जागीर नहीं है