दिल लगे हिज्र में क्यूँ कर मेरा दिल तिरा सा नहीं पत्थर मेरा यूँ तो रूठे हैं मगर लोगों से पूछते हाल हैं अक्सर मेरा राह निकलेगी न कब तक कोई तिरी दीवार है और सर मेरा कहते हैं आह की देखें तासीर न हुआ वस्ल मयस्सर मेरा ये तो कह कौन सी तदबीर न की न हुआ तू ही सितमगर मेरा क्या सुनूँ ऐ दिल-ए-बद-ज़न तेरी दोस्त है तो वो मुक़र्रर मेरा लुत्फ़ रंजिश के दिखाता तुम को क्या कहूँ बस नहीं दिल पर मेरा उन्हें मिलना नहीं मुझ से मंज़ूर किस की तक़्सीर मुक़द्दर मेरा पूछना क्या है चलें जाएँ आप ज़ोर चलता नहीं तुम पर मेरा ग़ैर का हाल है कहना मंज़ूर कहते हैं ज़िक्र मिला कर मेरा रश्क-ए-दुश्मन का गिला करता हूँ है क़ुसूर इस में सरासर मेरा ख़्वाहिश-ए-दिल कहीं बर आए 'निज़ाम' दिल कई दिन से है मुज़्तर मेरा