दिल लरज़ रहा है क्यूँ इस के ख़त को पा कर भी हर्फ़ हंस है हैं क्यूँ रंग रुख़ उड़ा कर भी तुझ से दूर रह कर भी दिल गिरफ़्ता रहते थे एक अजीब उलझन है तेरे पास आ कर भी चेहरे हैं कहते हैं आईने पशेमाँ हैं है अजीब हैरानी बज़्म-ए-दिल सजा कर भी लफ़्ज़ लफ़्ज़ फैला था नुक़्ता नुक़्ता सिमटा हूँ किस क़दर पशेमाँ हूँ दास्ताँ सुना कर भी ऐ 'शमीम' बेहतर है दूर ही रहो सब से संग-ए-मील की सूरत फ़ासले मिटा कर भी