दिल में जो ख़ला था भर गया क्या सैलाब-ए-जुनूँ उतर गया क्या आँखों में ख़्वाब जल रहे हैं बारिश का समय गुज़र गया क्या शहरों में रत-जगे बहुत हैं ज़ेहनों का सुकूँ बिखर गया क्या आराम की नींद सोने वालो अंदेशा-ए-हम-सफ़र गया क्या हमसाए में भूक जागती है मेरा भी ज़मीर मर गया क्या