किसी की आँखों में सैल-ए-आब नहीं ज़िंदगी तेरा भी जवाब नहीं हम से कहती है शाम-ए-तन्हाई मैं नहीं आज या जनाब नहीं दिल को ज़ंजीर कर दिया हम ने अब वो पहला सा पेच-ओ-ताब नहीं मुँह से कुछ बोल वक़्त थोड़ा है ख़ामुशी बात का जवाब नहीं जिस से रौशन है दश्त-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल एक औरत है माहताब नहीं साथ है ज़िंदगी के रंज-ए-फ़िराक़ एक दो दिन का ये अज़ाब नहीं अपनी ता'बीर अपने पास रखो मेरी आँखों में कोई ख़्वाब नहीं रहम कर रहम रब्ब-ए-मौजूदात बख़्शिशों का तिरी हिसाब नहीं