दिल में वो थे दिल था रौशन अब ख़ुदा का नाम है वो था आग़ाज़-ए-मोहब्बत और ये अंजाम है ज़ब्त-ए-ग़म का सिलसिला अब जुज़्व-ए-हस्ती बन गया चाहे जो कुछ भी करें वो मेरे सर इल्ज़ाम है बिस्तर-ए-गुल पर जो महव-ए-ख़्वाब हैं वो जानें क्या ज़िंदगी ख़ार-ए-अलम है तेग़-ए-ख़ूँ-आशाम है हुस्न को संजाब-ओ-मख़मल इश्क़ को जामा-दरी बारगाह-ए-हक़ से उल्फ़त का यही इनआ'म है ख़ाम है जिस का शुऊर-ए-ज़िंदगी जाने वो क्या हर हसीं शय में ख़ुशी का आज भी पैग़ाम है जल्वा-हा-ए-रंग-ओ-बू क्या दावत-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र ज़िंदगी क्या है मुसलसल जुस्तुजू का नाम है ख़ून जब ग़ुंचों का होता है तो खिलते हैं गुलाब पर्दा-ए-तख़रीब में ता'मीर का पैग़ाम है चश्म-ए-इंसाँ में हुई तक़्दीर-ए-आलम बे-हिजाब मरकज़-ए-तस्ख़ीर अब तो चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम है ज़िंदगी का राज़ क्या है या फ़ना क्या चीज़ है तू 'पयामी' रम्ज़ समझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है