हमारी तरह उठाया है किस ने ग़म तन्हा कि उन के साथ ज़माना है और हम तन्हा वफ़ा की राह में काँटे क़दम क़दम पे मिले मिरे सिवा तो चले कोई दो क़दम तन्हा ये किस मक़ाम पे ले आई ज़िंदगी अपनी सितम के तीर हज़ारों हैं और हम तन्हा जिधर निगाह गई अजनबी से चेहरे थे दयार-ए-शौक़ में फिरते हैं आज हम तन्हा हमारे बाद निसार-ए-वफ़ा कहाँ कोई फिरे है शहर में बे-आबरू सितम तन्हा ख़ुशी की भीक 'पयामी' न माँग ग़ैरों से कि काम वक़्त पे आता है अपना ग़म तन्हा