दिल में जागी ही नहीं थी आरज़ू पहले कभी इस तरह मिलता ही कब था मुझ से तू पहले कभी ज़िंदगी तू ही बता कैसे तुझे पहचानता तू कहाँ आई थी मेरे रू-ब-रू पहले कभी बिक रहें हैं चंद सिक्कों के एवज़ जिस्म-ओ-ज़मीर इस क़दर सस्ती नहीं थी आबरू पहले कभी मैं तुम्हारे शहर की तहज़ीब से वाक़िफ़ न था पत्थरों से की नहीं थी गुफ़्तुगू पहले कभी