बुझा भी हो तो उजाला मिरी नज़र में रहे कोई चराग़ तो ऐसा भी मेरे घर में रहे बना बना के बिगाड़ा गया हमें अक्सर मिसाल-ए-कूज़ा किसी दस्त-ए-कूज़ा-गर में रहे हिसार-ए-इश्क़ से बाहर निकल सके न कभी कि हम बिछड़ के भी तुझ से तिरे असर में रहे रह-ए-सफ़र में सर-ए-शाम हम ठहर तो गए मगर कुछ ऐसे कि जैसे कोई सफ़र में रहे फ़िराक़-ए-यार ही तक़दीर हो तो क्या कीजे विसाल-ए-यार का सौदा हज़ार सर में रहे निगाह ख़ूब सही दूसरों के ऐबों पर मगर ख़ुद अपना गरेबान भी नज़र में रहे न हो ख़ुशी का गुमाँ ऐसे ग़म पे क्यूँ 'ख़ावर' जो ग़म ख़ुशी की तरह क़ल्ब-ए-मो'तबर में रहे