दिल में जो आए अच्छा बुरा कह लिया करो तुम भी किसी से अपनी ख़ता कह लिया करो दो आँखें अब भी देखती हैं रास्ता तिरा जा कर कभी सलाम दुआ कह लिया करो बदला हुआ है इश्क़ का दस्तूर मेरी जाँ हर संग-दिल को जान-ए-वफ़ा कह लिया करो दिलबर से दिल की बात छुपाना गुनाह है जिस दिन हो ख़ुश-गवार फ़ज़ा कह लिया करो क्यों दूसरों के सामने रखते हो अपनी बात सुनता है सब की बात ख़ुदा कह लिया करो माना अब अपने बीच कहीं कुछ नहीं रहा दिल चाहे कुछ जो कहना ज़रा कह लिया करो 'रख़्शाँ' ग़ज़ल की आबरू रखना भी है कमाल सूझे जो कुछ ख़याल नया कह लिया करो