दिल में क्यों हैं तल्ख़ियाँ हम क्या कहें दास्तान-ए-जिस्म-ओ-जाँ हम क्या कहें रहज़नों की उँगलियों को थाम कर चल रहा है कारवाँ हम क्या कहें फूस का था बच न पाया आग से जल गया वो जो मकाँ हम क्या कहें मिलते किस से पूछते भी किस से हम सामने था बस धुआँ हम क्या कहें तुम शिकायत लाए किस की अपने पास वो तो है इक बे-ज़बाँ हम क्या कहें एक अर्से से हमारे दिल में भी राज़ उस का है निहाँ हम क्या कहें ढूँडते हैं ज़िंदगी को वो 'नज़र' हो गई गुम वो कहाँ हम क्या कहें