दिल में सौ आरमान रखता हूँ प्यारे आख़िर मैं जान रखता हूँ वाह-री अक़्ल तुझ से दुश्मन से दोस्ती का गुमान रखता हूँ सब्र छुट दिल सब और बातों मैं क़ाबिल-ए-इम्तिहान रखता हूँ आह तेरे भी ध्यान में कुछ है किस क़दर तेरा ध्यान रखता हूँ तुझ से हर बार मिल के मैं बे-सब्र न मलूँ फिर ये ठान रखता हूँ सिर्फ़ मैं तो 'असर' बिसान-ए-जरस आह-ओ-नाला बयान रखता हूँ