ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए कि मंज़िल दूर हो और रास्ते में शाम हो जाए वही नाला वही नग़्मा बस इक तफ़रीक़-ए-लफ़्ज़ी है क़फ़स को मुंतशिर कर दो नशेमन नाम हो जाए तसद्दुक़ इस्मत-ए-कौनैन उस मज्ज़ूब-ए-उल्फ़त पर जो उन का ग़म छुपाए और ख़ुद बद-नाम हो जाए ये आलम हो तो उन को बे-हिजाबी की ज़रूरत क्या नक़ाब उठने न पाए और जल्वा आम हो जाए ये मेरा फ़ैसला है आप मेरे हो नहीं सकते मैं जब जानूँ कि ये जज़्बा मिरा नाकाम हो जाए अभी तो दिल में हल्की सी ख़लिश महसूस होती है बहुत मुमकिन है कल इस का मोहब्बत नाम हो जाए जो मेरा दिल न हो 'शेरी' हरीफ़ उन की निगाहों का तो दुनिया भर में बरपा इंक़लाब-ए-आम हो जाए