दिल में यादों के दाग़ जलते हैं या बहारों में बाग़ जलते हैं जगमगाता है और वो चेहरा रात में जब चराग़ जलते हैं जब कभी चाँदनी चटकती है ख़ाली ख़ाली अयाग़ जलते हैं लब पे आता है जब भी नाम उन का हसरतों के चराग़ जलते हैं दुश्मनों की सलीक़ा-मंदी से दोस्तों के दिमाग़ जलते हैं मौत की रौशनी बढ़ाने को ज़िंदगी के चराग़ जलते हैं एक बुझता है इक सुलगता है ज़ीस्त के यूँ चराग़ जलते हैं हाए क्या शय है रंग-ए-आतिश-ए-गुल बुलबुलों के दिमाग़ जलते हैं शो'ला शो'ला हो दिल अगर 'राही' आँधियों में चराग़ जलते हैं