दिल में यूँ प्यार की इक ताज़ा कहानी महके जैसे आँगन मेन कहीं रात-की-रानी महके मैं ने लफ़्ज़ों को कहाँ उस की तरफ़ मोड़ा है ज़िक्र आ जाए जो उस का तो कहानी महके सर से पा तक उसे ख़ुशबू का ख़ज़ाना कहिए बैठे दरिया में उतर जाए तो पानी महके ग़म की सदियों की अमानत है ग़ज़ल की तहज़ीब 'मीर' के बा'द उसी रंग में 'फ़ानी' महके इस को कहते हैं मोहब्बत का करिश्मा 'मंसूर' मेरी ग़ज़लों में मिरा दुश्मन-ए-जानी महके