दिल मिरा साग़र-ए-शिकायत है ज़हर-ए-ग़म बस कि बे-निहायत है वो भवें मुझ पे क्यूँ न ज़ुल्म करें चश्म-ए-ख़ूँ-रेज़ की हिमायत है देव मुझे लाख दाम की जागीर ज़ुल्फ़ खोलो बड़ी रिआयत है नक़्द-ए-दीदार बुल-हवस कूँ न देव इस में सरकार की किफ़ायत है बे-गुनाहों कूँ क़त्ल करने पर मुफ़्ती-ए-नाज़ की रिवायत है हैकल-ए-लख़्त-ए-दिल में हर्फ़-ए-वफ़ा मुर्शिद-ए-इश्क़ की इनायत है शम्अ-रू सुन बयान-ए-सोज़-ए-'सिराज' कि अजब दर्द की हिकायत है