दिल मुझे समझाता है तो दिल को समझाता हूँ मैं जाने कैसे अक़्ल की बातों में आ जाता हूँ मैं दिन मुझे हर दिन बना लेता है अपना यर्ग़माल रात जब आती है तो ख़ुद को छुड़ा लाता हूँ मैं कोई झूटा वा'दा भी करता नहीं है वो कभी ख़ुद उमीदें बाँध लेता हूँ बहल जाता हूँ मैं ज़िंदा रहने का मुझे फ़न आज तक आया नहीं फिर भी जीना चाहता हूँ क्या ग़ज़ब ढाता हूँ मैं डाल कर आँखों में आँखें करनी है कुछ गुफ़्तुगू ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी तो रुक अभी आता हूँ मैं मैं ने दरिया के हवाले कर दिया है तन-बदन मौजों की रौ में ख़मोशी से बहा जाता हूँ मैं अब न आएगा मिरे शे'रों में तेरा तज़्किरा ऐ मिरी जान-ए-ग़ज़ल तेरी क़सम खाता हूँ मैं शिद्दत-ए-ग़म ही इलाज-ए-ग़म भी होता है 'कमाल' बढ़ती हैं तारीकियाँ तो रौशनी पाता हूँ मैं