बदल रहा है ज़माना तो मेरे ठेंगे से है मेरा तौर पुराना तो मेरे ठेंगे से जो चार पैसे हैं मुट्ठी में बस वो मेरे हैं है तेरे पास ख़ज़ाना तो मेरे ठेंगे से कभी लकीर का बनता नहीं फ़क़ीर वो शख़्स उसे न मानो सियाना तो मेरे ठेंगे से मिरी कहानी हक़ीक़त पे मुनहसिर है मगर तुझे लगे है फ़साना तो मेरे ठेंगे से तिरी पसंद से मिलती नहीं पसंद मिरी यही है एक बहाना तो मेरे ठेंगे से अदू से करना है सारा हिसाब चुकता 'फ़ैज़' अगर वो जाएगा थाना तो मेरे ठेंगे से