दिल मुज़्महिल है तेरी नवाज़िश के बावजूद ये सरज़मीं उदास है बारिश के बावजूद ख़ीरा न कर सके निगह-ए-इम्तियाज़ को झूटे नगीं नुमूद-ओ-नुमाइश के बावजूद एक फूल भी चमन में न दिल खोल कर हँसा शबनम के आँसुओं की गुज़ारिश के बावजूद क्या क़हर है कि झूट में मिलती है आफ़ियत सच बोलना मुहाल है ख़्वाहिश के बावजूद मेरा वक़ार ज़ीस्त न मजरूह कर सके दुश्मन हज़ार हीला-ओ-साज़िश के बावजूद अपनी ग़लत रविश को न तब्दील कर सके कुछ दोस्त बार बार गुज़ारिश के बावजूद बरख़ुद ग़लत कभी न हुए ज़िंदगी में 'लैस' दुनिया-ए-फ़न में दाद-ओ-सताइश के बावजूद