दिल मुकद्दर मुदाम का निकला कब ये आईना काम का निकला बहस थी मय-कशी में ज़ाहिद से उज़्र माह-ए-सियाम का निकला ये सुना है कि अब वो हरजाई सुब्ह आता है शाम का निकला दिल के मिलने की फिर उमीद नहीं ये अगर उस के काम का निकला वाह क्या क्या तिरी मोहब्बत में हौसला ख़ास-ओ-आम का निकला सच तो ये है कि आशिक़ी में 'दाग़' एक ही अपने नाम का निकला