दिल में है ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम हिर्स-ओ-हवा बंद दुनिया में मुख़म्मस का हमारे न खुला बंद हम दाम में फँसते ही हुए आशिक़-ए-सय्याद ये और भी इक बंद पे मज़बूत लगा बंद ऐ हज़रत-ए-दिल जाइए मेरा भी ख़ुदा है बे आप के रहने का नहीं काम मिरा बंद ऐ मोहतसिब इक दम से तिरी कितनी जफ़ाएँ शीशे का है दम बंद सुराही का गला बंद दम रुकते ही सीने से निकल पड़ते हैं आँसू बारिश की अलामत है जो होती है हवा बंद कहते थे हम ऐ 'दाग़' वो कूचा है ख़तरनाक छुप छुप के मगर आप का जाना न हुआ बंद