दिल न बैठे उसे दुनिया के ख़ज़ाने से उठा देख इक शय भी न इस आइना-ख़ाने से उठा नज़्अ' का कर्ब हुआ कैफ़-ए-दम-ए-बाज़-पसीं ले के सिसकी जो कोई मेरे सिरहाने से उठा हाए अब कौन सहे हँस के मिरे जौर-ओ-सितम शोर-ए-मातम मिरे मरने का ज़माने से उठा इश्क़ का दर्द न बर्दाश्त करें दश्त-ओ-जबल बार-ए-ग़म ये भी मगर तेरे दिवाने से उठा तय हुई राह-ए-वफ़ा जुम्बिश-ए-अबरू के निसार ज़िंदगी भर का था इक बोझ जो शाने से उठा ख़ून से ख़ाक पे लिक्खी गई तफ़्सीर-ए-हयात या-हुसैन आप का नाम और मिटाने से उठा दर-ए-जन्नत पे कहा क़ुदसी से रिज़वाँ ने यही जाने किस ख़्वाब में था ‘बर्क़’ जगाने से उठा