दिल-ओ-निगाह को कब इन का मुस्तक़र जाना ख़याल-ओ-ख़्वाब को इक अर्सा-ए-सफ़र जाना तुम्हारे ख़्वाब पस-अंदाज़ कर लिए हम ने और अपने आप को फिर कितना मो'तबर जाना ये कारवाँ तो न जाने कहाँ तलक जाए तुम्हें जहाँ कहीं मंज़िल मिले ठहर जाना गुहर सदफ़ में न रहता तो फिर कहाँ रहता उस एक क़तरे को किस ने अज़ीज़-तर जाना सरिश्त है यही उस की बचाएगा दामन अगर वो बात बदल दे तो ज़ब्त कर जाना समझ तो लेने दो इन नफ़रतों का कोई जवाज़ फिर इस के बाद मिरे दिल से भी उतर जाना जो कुछ कहा उसे अहवाल-ए-वाक़ई समझा जो सच्चा शे'र न समझा उसे हुनर जाना बड़ा सुकून बड़ी आफ़ियत मिलेगी 'नसीम' किसी की बज़्म से उट्ठो तो अपने घर जाना