दिल-ओ-निगाह में जैसे ठहर गया मौसम तुम्हारे बाद न बदला ये दर्द का मौसम गुज़र चुके हैं नज़र से हज़ार-हा मौसम किसी के वादा-ए-शब का न आ सका मौसम बिछड़ गए हो अगर तुम तो मर न जाऊँगा बिछड़ के आप से मरने का था जुदा मौसम ख़िज़ाँ की रुत भी बहारों के साथ चलती है कहाँ वो बाग़ कि जिस में हो एक सा मौसम कहाँ ये वस्ल की बे-कैफ़ बे-मज़ा घड़ियाँ कहाँ वो तेरी जुदाई का ख़ुशनुमा मौसम