जो इत्तिफ़ाक़ से हम साहब-ए-फ़राश हुए तो हम पे राज़-ए-अज़ीज़ाँ भी ख़ूब फ़ाश हुए हम आइना तो नहीं फिर भी रात बिस्तर पर गिरे जो आ के तो गिरते ही पाश-पाश हुए किसे सुनाइए आज़ादगान-ए-शहर का हाल कि रफ़्ता-रफ़्ता सभी कुश्ता-ए-मआश हुए न पूछ अश्क-ए-रिया-कार का मआल ऐ दोस्त वो अश्क तो रुख़-ए-एहसास की ख़राश हुए तमाम उम्र तलाश-ए-सुकूँ रही हम को तमाम उम्र न आसूदा-ए-तलाश हुए कहाँ की नग़्मा-सराई कि साज़-ए-हस्ती के तमाम तार ही महरूम-ए-इर्तिआ'श हुए जनाब-ए-'लैस' जो अहबाब से गुरेज़ाँ थे ये इंक़लाब तो देखो कि यार-बाश हुए