दिल ओ निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का तुम्हारा हो के भी मुमकिन है मैं रहूँ उस का ज़मीं की ख़ाक तो कब की उड़ा चुके हैं हम हमारी ज़द में है अब चर्ख़-ए-नील-गूँ उस का तुझे ख़बर नहीं इस बात की अभी शायद कि तेरा हो तो गया हूँ मगर मैं हूँ उस का अब उस से क़त-ए-तअल्लुक़ में बेहतरी है मिरी मैं अपना रह नहीं सकता अगर रहूँ उस का दिल-ए-तबाह की धड़कन बता रही है 'रज़ा' यहीं कहीं पे है वो शहर-पुर-सुकूँ उस का